अयोध्या : मामला जनपद के थाना कैंट क्षेत्र के बहुचर्चित निजी शैक्षिक स्कूल सनबीम में हुई बालिका की संदिग्ध परिस्थियों मे हुई मौत से जुड़ा है मामले की संवेदनशीलता और लोगों के आक्रोश को देखते हुए मामले को एसआईटी को सौंप दिया गया था जिले का पूरा पुलिस अमला और उच्च अधिकारी मामले की जाँच मे जुटे थे पूरी जाँच मे सबसे संदिग्ध बात यही थी कि बालिका की पोस्टमार्टम रिपोर्ट को छिपा लिया गया था , लोगों मे आक्रोश बढ़ता जा रहा था मामले के हाई प्रोफाइल होने से मामले मे लीपापोती होने की पूरी आशंका थी क्योंकि प्रबंधक बृजेश यादव के रसूख का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्कूल के सामने बन रहे ओवरब्रिज का रास्ता बदलवा दिया गया ताकि स्कूल सड़क चौङीकरण की जद मे ना आ सके, लम्बे समय से जमीनों पर अवैध कब्जे कर रखे हैं लेकिन कोई कुछ नही कर सका, पूरे मामले की गंभीरता को देखते हुए स्कूल प्रबंधक बृजेश यादव, प्रधानाचार्य रश्मि भाटिया व खेल शिक्षक अभिषेक कनौजिया के खिलाफ 376D, 120B , 302 व पाक्सो एक्ट की धाराओ मे मुकदमा पंजीकृत किया गया था, लेकिन अब एसआईटी की रिपोर्ट मे पूरे मामले की एक अलग ही कहानी सामने आई है रिपोर्ट के अनुसार बालिका की हत्या नही हुई है
बल्कि उसने आत्महत्या की थी, छात्रा के मोबाइल मे एक नाबालिग छात्र के साथ चैटिंग मिली, उसी छात्र से अनबन होने से उसने स्कूल की छत से कूदकर आत्महत्या कर ली, शिक्षा माफ़िया की शह पर पुलिस माफ़िया ने मामले मे पूरी तरह लीपापोती करते हुए नाबालिग को आरोपी बना दिया है और नाबालिग पर 305 आईपीसी व प्रबंधक पर 336/201 आईपीसी मे मामला दर्ज किया है ,दावा किया जा रहा है नाबालिग आरोपी ने बालिका को आत्महत्या के लिए उकसाया था, लेकिन जाँच मे एक स्पष्ट नही है कि कथित बाल अपचारी से अनबन होने पर बालिका ने स्कूल से छत से ही आत्महत्या क्यो की ? आत्महत्या तो वह कही भी कर सकती थी उसके लिए स्कूल जाना क्या जरूरी थी ? स्कूल मे ऐसी क्या घटना हुई जिससे वह इतनी आहत हुई की आत्महत्या कर ली ? वो लोग कौन थे जो छत से गिरी बालिका को उठाकर अपने साथ ले गए ? स्कूल मे अवकाश था तो स्कूल खुला कैसे और कितने छात्र/छात्रायें और शिक्षक वहाँ मौजूद थे उन्होंने जाँच मे क्या कहा ? अवकाश के दिन किसने बालिका को स्कूल आने के लिए बाध्य किया ? एसआईटी टीम से पहले पुलिस जाँच मे मृतक बालिका और नाबालिग आरोपी का संपर्क सामने क्यो नही आया ? एफआईआर मे खेल शिक्षक को आरोपी बनाकर जाँच को भटकाने का प्रयास क्यो किया गया ? प्रबंधक या अन्य लोगों पर हत्या का मुकदमा दर्ज क्यो नही हुआ जबकि उनकी लापरवाही से तड़फती बालिका की मौत हो गई ? सिर्फ़ प्रबंधक को ही आरोपी क्यो बनाया गया क्या उसने अकेले ही सारे सुबूत मिटाने के प्रयास किये ? परिजनों ने स्कूल पर झूठे आरोप क्यो लगाए थे ? पोस्टमार्टम की रिपोर्ट मे ऐसा क्या था जिसे छिपाया गया ? ऐसे बहुत सारे सवाल है जिनके जवाब अब कोई नही देगा क्योंकि मामले को दबा दिया गया है नाबालिग आरोपी को सजा हो नही सकती और प्रबंधक का रसूख इतना है कि सजा होगी नही, होगी भी तो उपरोक्त धाराओ मे मात्र 3 महीने की सजा का प्रावधान है जाँच मे जिन तथ्यों को जान बूझकर अनदेखा किया गया है उसी का लाभ उसे मिलेगा और वह न्यायालय से भी दोष मुक्त होगा, विरोध प्रदर्शन और शोसल मीडिया मे न्याय की गुहार लगाकर अगर आप थक गए है तो आत्म मंथन करिये कि सारा सिस्टम किसके लिए काम करता है कथित तौर पर तेज तर्रार और ईमानदार पुलिस अधीक्षक मुनिराज के राज मे भी जाँच ऐसे ही होती है