लखनऊ : सपा ने स्वामी प्रसाद मौर्य की हिंदू धर्म ग्रंथ राम चरित मानस पर विवादित टिप्पणी के 48 घण्टे के भीतर ही समाजवादी पार्टी द्वारा उन्हे राष्टीय महासचिव बनाकर ईनाम दे दिया गया था, अखिलेश यादव द्वारा नाट्कीय तरीके से मंदिर के सामने जाना और ट्वीट करना और स्वामी का विवादित बयान और लगातार बयान पर अड़े रहना एक सुनियोजित पटकथा से इतर कुछ भी नही है अखिलेश लम्बे समय से सत्ता से दूर हो चुके है 2017 व 2022 मे समाजवादी पार्टी की करारी हार हुई है मुस्लिम - यादव, यादव -दलित- ब्राह्मण पर कई बार चुनावी दाव खेल चुके अखिलेश बिहार मे लालू परिवार की नीति का अनुसरण करने की तैयारी मे है लालू के जातिवादी एजेडे मे आरजेडी को काफी लाभ मिला था और पार्टी बिहार मे कई दशकों तक सत्ता मे रही लेकिन नितीश ने बड़ा उलटफेर करते हुए इनके समीकरण को ध्वस्त कर दिया और लगभग डेढ़ दशक से भी अधिक समय से लालू परिवार को पूर्ण सत्ता मे नही आने दिया, पिछले कुछ वर्षों मे लालू परिवार ने काशीराम की सवर्ण विरोधी कट्टर छवि बनाने की कोशिश की और जातिवाद जनगणना के लिए नितीश सरकार पर दबाब बनाया, राजनीतिक विश्लेषक मानते है कि अब उसी नीति पर अखिलेश भी चलना चाहते है उनको लगता है कि वह बिहार की तर्ज पर जनता के मन मे अगर ये भावना भरने मे सफल हुए कि सवर्ण देश भर मे 4% से 5% की आबादी के साथ देश की 95% को हजारों साल से गुलाम बनाये हुए है तो भाजपा का एक बड़ा वोट बैंक खिसक सकता है और उनके पाले मे दलित जातियों का वह वोट बैंक भी आ सकता है जिसे काशीराम और उनके संगठनो द्वारा लगातार हिंदू विरोध मे तैयार किया गया था और मायावती की लम्बे समय तक सत्ता से दूरी पर निष्क्रिय हो गया था
स्वामी प्रसाद मौर्य द्वारा राम चरित मानस को ब्राह्मणों की पुस्तक बताना इसे महिला, पिछड़ा और दलित विरोधी और धार्मिक ग्रंथ मानने से इंकार करना समाजवादी पार्टी के वर्चस्व को बचाने की जुगत है क्योकि लम्बे समय से केन्द्र व प्रदेश की सत्ता मे काबिज भाजपा ने लोगों के मकान, बिजली,सड़क जैसे मुद्दों पर बड़ा काम किया है, विपक्ष के पास महगाई व बेरोजगारी के अलावा कोई बड़ा मुद्दा शेष नही है लगातार युवावों को साधने मे लगी सपा को कोई बड़ा सहयोग प्रदेश के युवाओ से नही मिल रहा है उन्हे पता है कि सिर्फ मोदी विरोध से उनकी नैय्या पार नही होगी, उत्तर प्रदेश की सत्ता मे बने रहने के लिए इस तरह की राजनीति से अखिलेश व सपा को कितना लाभ मिलेगा ये तो समय ही बताएगा , वैसे स्वामी को ईनाम मिलते ही सवर्ण नेताओ को राष्टीय कार्यकारिणी से बाहर करके नया दाव पार्टी की तरफ से खेला गया है, चुनाव आते आते अभी प्रदेश को दंगो और समाज मे जातिवादी तनाव पैदा करने की योजना से भी इंकार नही किया जा सकता है