डॉ अम्बेडकर ने उन लोगों के बारे में क्या कहा था जो आज लगाते हैं जय भिम-जय मिम का नारा

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Opinion/Research~ भारत मे भेदभाव के मुद्दों पर दशकों से बहस चलती आ रही है हमारे देश के बहुत सारे क्रांतिकारीयो और समाजसेवियों ने इसके उन्मूलन के लिए आंदोलन किये ताकि भारतीय समाज मे एकता और अखंडता बनी रहे हालांकि दलित समाज में उनके नेताओं द्वारा ये भ्रांतियां फैलाई गई कि उनके साथ हिंदुओ द्वारा दुर्व्यवहार किया जाता है और उनके समाज के नेता ही उनका भला कर सकते हैं 

चित्र साभार ~ Google.com

काफ़ी समय से मीडिया में वीर दामोदर सावरकर के बारे में भी चर्चाएं होती रहती हैं एक बड़ा धड़ा जो वामपंथ और मुस्लिम तुष्टिकरण सोच से पोषित है और दलितों को अपनी कठपुतली समझता है वो सावरकर को अंग्रेजो का हितैषी बताते हैं जबकि दामोदर सावरकर 2 बार अंग्रेजो की काला पानी की कठोर सजा और वर्षों तक यातनाएं सहन करने के बाद जब बाहर आये तो उन्होंने दलितों के लिए 'सत्य सनातन मंदिर ' की स्थापना की और समाज से छुआ छूत और भेदभाव मिटाने के लिए आंदोलन की शुरुआत की लेकिन जब डॉ भीमराव की बात आती है तो सभी क्रांतिकारियों और समाजसेवियों को दरकिनार करने की कोशिश की जाती है अगर डॉ भीमराव की बात करें तो उनकी लिखी पुस्तक ' ए वेटिंग फ़ॉर वीजा ' के अनुसार वो अपनी 1934 की दौलताबाद यात्रा का ज़िक्र करते हुए लिखतें हैं कि ' वो रमजान के महीना था हमने दौलताबाद क़िले के बाहर बने तालाब में अपने हाथ पाँव धोये ही थे कि एक बूढ़ा मुसलमान चिल्लाया कि तुमने हमारे तालाब का पानी गंदा कर दिया थोड़ी ही देर में वहाँ बहुत सारे मुसलमान जमा हो गए और हमें गालियां देने लगे और कहा ' तुम अछूतों का दिमाग खराब हो गया है ' तुम्हारी औकात क्या है' तुम्हें सबक सिखाने की जरूरत है '


हमने उन्हें बहुत समझने की कोशिश की लेकिन वो हमारी बात सुनने को तैयार नही थे वो इतनी गंदी गंदी गालियां दे रहे थे कि हम बर्दाश्त नही कर पा रहे थे वहाँ दंगे जैसे हालात बन गए थे और हम से किसी की हत्या भी हो सकती थी इस घटना से मैं काफ़ी आहत था

दुर्भाग्य की बात ये है कि डॉ भीमराव ये मानते थे कि इस्लाम मे कट्टरपंथ के साथ साथ जातियों के बीच बहुत भेदभाव है जो अन्य धर्मों की अपेक्षा अधिक है फिर भी वो सिर्फ हिन्दू दलितों की आवाज उठाने की कोशिश की जबकि मुस्लिम दलितों को जान बूझकर उपेक्षित किया गया उनका मानना था कि


मुसलमान भारत के खिलाफ जेहाद छेड़ सकते हैं

अम्बेडकर अपनी पुस्तक ' पाकिस्तान ऑर पार्टिसन ऑफ इंडिया ' में लिखतें हैं कि मुसलमान भारत को 'दारुल उल हब्र ' मानते हैं जिसका मतलब था कि जिस देश में काफिरों ( ग़ैर मुस्लिम ) का शासन हो , इसलिए वो कभी भी भारत के खिलाफ जेहाद छेड़ सकते हैं क्योंकि इस्लामी सिद्धान्तों के अनुसार जो देश देश मुस्लिम राष्ट्र नही है उसके खिलाफ जेहाद छेड़ना न्यायसंगत है वो आवश्यकता पड़ने पर सिर्फ जेहाद की घोषणा ही नही बल्कि विदेशी मुस्लिम देशों से मदद भी मांग सकते हैं यदि कोई मुस्लिम देश कभी जेहाद की घोषणा करता है तो भारत के मुस्लिम उसकी सफलता के लिए उसकी मदद भी कर सकते हैं 


मुसलमान शरिया इस्लामिक कानून को मानते हैं देश से ऊपर

डॉ भीमराव की पुस्तक ' पाकिस्तान ऑर पार्टिसन ऑफ इंडिया ' में पेज नंबर 294 में उन्होंने लिखा ' इस्लाम कहता है कि अगर किसी गैर मुस्लिम देश में मुसलमानों के इस्लामिक कानून यानि शरिया और उस देश के कानून के बीच विवाद हो तो इस्लामिक शरिया कानून सबसे बड़ा है इसलिए हो सकता है कि भारत के मुसलमान देश के कानून को मानने से मना कर दें 


हिंदुओ की सरकार को स्वीकार नही करेंगे मुसलमान

डॉ भीमराव अपनी पुस्तक के पेज नम्बर 303 पर लिखतें हैं कि ' हिंदुओ से नियंत्रित और शासित सरकार की सत्ता मुसलमानों को किस हद तक स्वीकार होगी इसके लिए ज़्यादा माथापच्ची करने की जरूरत नही मुसलमानों के लिए हिन्दू काफ़िर हैं और उनकी कोई सामाजिक हैसियत नही होती है इसलिए जिन देशों में ग़ैर मुसलमानों का शासन  हो उसे वे ' दारुल उल हब्र ' कहते हैं इस स्थिति में यह साबित करने के लिए सबूत की आवश्यकता नही है कि मुसलमानों में हिन्दू सरकार के शासन स्वीकार करने की इच्छा शक्ति मौजूद नही है जब ख़िलाफ़त आंदोलन के दौरान हिन्दू , मुसलमानों की मदद के लिए आगे आये थे तब भी मुसलमान ये नही भूले कि वो काफिरों पर राज करने वाले लोग हैं और हिन्दू उनकी तुलना में निम्न और घटिया कौम है '


डॉ भीमराव द्वारा लिखित इन पुस्तकों और लेखों से स्पष्ट होता है कि आज के दौर में बिम - मिम एकता की बात करने वाली की विचारधारा क्या है और भारतीय समाज पर इसका क्या असर पड़ सकता है 

और यह दलितों के लिए कितना हितकर है यह स्वयं उन्हें हो सोचना है या उनके स्वघोषित नेतागण जो उनके हितों को अनदेखा कर सिर्फ खुद के लिए संपत्ति और सत्ता का रास्ता तैयार करते रहते हैं भीमराव खुद जीवन भर कोट पैंट पहनकर घूमते रहे जबकि देश के अधिकतर लोग गरीबी और भुखमरी , उत्पीड़न और शोषण बर्दाश्त कर रहे थे अग्रेज़ो के खिलाफ क्रांतिकारी अपने सीनों पर गोली खा रहे थे लेकिन वो दलितों की लड़ाई के नाम पर बड़े मकानों में रहते थे चांदी की थाली में खाना खाते थे और बड़े बड़े लोगों से मिलते थे उनके समर्थक जिस बदलाव की बात करते थे आज आजादी के 75 सालों बाद भी नही दिख रहा है देश मे 90% दलित आज भी कोट पैंट तक नही पहन सकते हैं उनकी आर्थिक स्थिति आज भी दयनीय बनी हुई है जबकि उनका नाम लेकर राजनीति करने वालो के पास अरबों की संपत्ति हैं , जबकि वो जातिगत आरक्षण और SC/ST जैसे कानून की मांग करते हैं ताकि लोगों को ये दर्शाया जा सके कि वो अलग है फिर वही लोग ये कहते हैं कि देखो समाज मे समानता ही नही है जबकि वो जानते हैं कि गरीब और दलित अगर पढ़ लिख लेगा या समझदार हो जायेगा तो भीड़ बनकर  उनके पीछे क्यों घूमेगा और उनकी राजनीति का क्या होगा 

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