सीरियल बम ब्लास्ट केस मे बरी हुए सभी आरोपी, एसआईटी की जांच से उपजे कई सवाल

Thejournalist
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 राजस्थान :मामला 13 मई 2008 मे हुए जयपुर सीरियल बम ब्लास्ट से जुड़ा है राज्य सरकार और जांच एजेंसियों की लापरवाही से सबूतों के अभाव मे हाईकोर्ट न्यायमूर्ति पंकज भंडारी और न्यायमूर्ति समीर जैन की बेंच ने निचली अदालत के आदेश को पलटते हुए चारों आरोपियों सैफुर्रहमान उर्फ़ सैफुर्र , मोहम्मद सरवर आजमी, मोहम्मद सलमान व मोहम्मद सैफ की 2019 फ़ासी की सजा माफ़ करते हुए उन्हे बरी कर है जिससे पूरे देश मे राजनीति मे गरम हो गई है भाजपा सहित विपक्षी दल राजस्थान सरकार के खिलाफ सड़को पर उतर आये है  जयपुर के भीषण बम ब्लास्ट मे मंदिरों, चौक और चौराहों पर 8 सीरियल धमाके हुए थे जिसमे लगभग 78 लोगों की मौत हो गई थी

 और 185 से भी अधिक लोग घायल हो गये थे हाईकोर्ट के 29 मार्च 2023 के फैसले से पीड़ितों के परिवार स्तब्ध है क्योकि वर्षों के लंबे इंतज़ार के बाद भी उन्हे न्याय नही मिल सका है और अब सभी आरोपियों को बरी कर दिया है जबकि पाँच मे से एक आरोपी को निचली अदालत ने ही साक्ष्यों के अभाव मे बरी कर दिया था , ब्लास्ट के अगले दिन इस्लामिक आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन ने इसकी ज़िम्मेदारी ली थी , सरकार की ओर से जांच एजेंसियों द्वारा 1270 गवाहों को पेश किया गया था, वकीलों ने 800 पेज की बहस की थी और न्यायालय ने 2500 पेज मे फैसला सुनाया था, लेकिन उच्च न्यायालय मे आतंकियों की तरफ़ से कई बड़े और लगभग 2 दर्जन वकीलो की फ़ौज ने पैरवी की, इन वकीलो की मोटी फ़ीस कई मुस्लिम संगठनो ने चुकाई है कोर्ट ने मामले मे जाँच एजेंसियों को भी जमकर फटकार लगाई है , उनके द्वारा जल्दबाजी मे तथ्यों की जाँच नही की गई, सबूतो को अनदेखा किया गया और कई माह बाद फ़र्जी सुबूत तैयार किये गए, वास्तविक सबूतो और गवाहो को पेश ही नही किया गया , इस्लामिक संगठन जमात-ए-इस्लामी हिंद ने हाईकोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए उनके लिए मुवावजे की मांग की है जबकि पीड़ित परिवारों की वर्षो की पीड़ा और मृतको की आत्मा पर यह एक और चोट है ,सरकारों की नाकामियों से न्याय व्यवस्था पर लोगों के कमजोर होते विश्वास की ये एक और इबारत है, ये फैसले कई सवाल छोड़ते हैं कि अगर सीरियल बम ब्लास्ट हुए लोगों की मौत हुई, सैकड़ो परिवार बर्बाद हुए, जब इन आरोपियों ने धमाके नही किये तो धमाके कैसे हुए? असली आतंकियों को कब पकड़ा जायेगा ? पीड़ितों को न्याय कब मिलेगा? क्या निचली अदालतें बिना तथ्यों के ही फांसी की सजा सुनाती हैं? जाँच एजेंसियों से इतनी चूक कैसे हो सकती है कि कोई सुबूत मेल ही ना खाये? संदिग्धो के स्कैच की वास्तविक प्रति कोर्ट मे जांच एजेंसियों द्वारा क्यो नही पेश की गई? जिन न्यूज़ चैनलों को इस्लामिक आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंकियों द्वारा ई मेल भेजे गए थे उनके लोगों को कोर्ट मे गवाह क्यों नही बनाया गया ? क्या न्यायालय की जिम्मेदारी नही है कि वह सरकार को फिर से वास्तविक जाँच के आदेश दे? जब न्यायालय सिर्फ फैसले सुनाने लगे और सरकारें जब लाशो पर सिर्फ राजनीति करने लगे तो लोकतंत्र एक व्यंग्य बनकर रह जाता है और नागरिको की मौत सिर्फ तमाशा ही है

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